पैसो के साथ-साथ तेल का खजाना उगाएं अपने खेत में, जानिए सूरजमुखी की खेती के बारे में

पैसो के साथ-साथ तेल का खजाना उगाएं अपने खेत में, जानिए सूरजमुखी की खेती के बारे में

सूरजमुखी भारत में एक महत्वपूर्ण तिलहनी फसल है. इसकी खेती लगभग सभी प्रकार की मिट्टी और जलवायु में की जा सकती है. इसकी पैदावार भी अधिक होती है और इसका तेल भी उत्तम माना जाता है. कर्नाटक, आंध्र प्रदेश, महाराष्ट्र और तमिलनाडु में सूरजमुखी की खेती बड़े पैमाने पर की जाती है। सूरजमुखी की खेती किसानों को अच्छा मुनाफा देती है. अगर किसान इसकी बुवाई और जुताई सही तरीके से करें तो उन्हें अच्छी पैदावार मिल सकती है. आइए, अब सूरजमुखी की आसान और लाभदायक खेती के बारे में विस्तार से जानते हैं।

सूरजमुखी की खेती के लिए मिट्टी

सूरजमुखी की खेती के लिए अच्छी जल निकास वाली और उपजाऊ मिट्टी की आवश्यकता होती है. निचली भूमि और किनारों वाली कम उपजाऊ मिट्टी सूरजमुखी की फसल के लिए उपयुक्त नहीं मानी जाती है।

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बीज बोने के लिए खेत की तैयारी

अंकुरण (Germination) की बेहतर स्थिति और पौधे के विकास के लिए मिट्टी को अच्छी तरह तैयार करने की आवश्यकता होती है. हल्की मिट्टी में, इसकी 1 या 2 बार जुताई करनी चाहिए और फिर उसमें से पत्थर, ढेले आदि निकालकर उसे समतल करना चाहिए. मध्यम और भारी मिट्टी में बारिश के तुरंत बाद या जब मिट्टी में नमी अनुकूल हो, तब 1 या 2 बार जुताई करें. गहरी जुताई के लिए हल का प्रयोग करना आवश्यक है. खेत की अच्छी तरह से जुताई करने के बाद ही बीज बोने चाहिए।

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जुताई का सही समय और बीज की मात्रा

बुवाई का समय इस प्रकार निर्धारित किया जाना चाहिए कि फूल आने के समय लगातार रिमझिम बारिश, बादल छाए रहना या तापमान 38 डिग्री सेल्सियस से ऊपर जाने से बचा जा सके. पारंपरिक रूप से इसकी खेती करने वाले क्षेत्रों में खरीफ के दौरान, यदि मिट्टी हल्की है, तो जून के दूसरे पखवाड़े से जुलाई के मध्य तक सूरजमुखी की बुवाई की जा सकती है और यदि मिट्टी भारी है, तो अगस्त के दूसरे पखवाड़े में सूरजमुखी की बुवाई की जा सकती है।

रबी सीजन में सितंबर से नवंबर के अंत तक सूरजमुखी की बुवाई की जा सकती है. जहां परंपरागत रूप से इसकी खेती नहीं की जाती है, वहां वसंत ऋतु में जनवरी से फरवरी के अंत तक इसकी बुवाई की जा सकती है।

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