मिट्टी की उपजाऊ शक्ति बढ़ाएगी हरी खाद की खेती, जानिए सही समय और प्रोसेस

मिट्टी की उपजाऊ शक्ति बढ़ाएगी हरी खाद की खेती, जानिए सही समय और प्रोसेस

ढैंचा की खेती: खेतों में अंधाधुंध रासायनिक खादों के इस्तेमाल से मिट्टी की उपजाऊ शक्ति लगातार कम होती जा रही है. इसका सीधा असर अब फसल उत्पादन पर भी पड़ने लगा है. कृषि भूमि में कार्बनिक पदार्थों की मात्रा लगातार कम हो रही है, जिससे जमीन की उर्वरता प्रभावित हो रही है. अगर किसान मिट्टी में कार्बनिक पदार्थों की मात्रा बढ़ाना चाहते हैं, तो रबी की फसल के बाद खेत में हरी खाद की खेती करनी चाहिए. इससे न सिर्फ खेतों की मिट्टी की स्थिति सुधरेगी बल्कि अगली फसल का उत्पादन भी बढ़ेगा।

हरी खाद से बढ़ेगी मिट्टी की उपजाऊ शक्ति

अयोध्या के कृषि विज्ञान केंद्र के अध्यक्ष बीपी शाही का कहना है कि खेत की उपजाऊ शक्ति बढ़ाने के लिए किसानों को साल में एक बार हरी खाद की खेती जरूर करनी चाहिए. हरी खाद एक तरह की दलहनी फसल होती है, जो 44 से 50 दिनों में तैयार हो जाती है. इस फसल के तैयार होने के बाद इसे ट्रैक्टर के रोटावेटर से खेत में ही मिला दिया जाता है, जो बारिश के बाद या खेत में पानी जमा होने से सड़ने लगती है. इससे मिट्टी के जैविक और रासायनिक गुणों में वृद्धि होती है, जिससे खेत में जलधारण क्षमता भी बढ़ जाती है. हरी खाद की खेती से मिट्टी को नाइट्रोजन, फॉस्फोरस और पोटाश जैसे पोषक तत्व मिलते हैं. साथ ही, मिट्टी में कार्बनिक पदार्थों की मात्रा भी बढ़ती है।

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ढैंचा खेती से उपजाऊ होगी मिट्टी

गर्मियों के दिनों में ज्यादातर किसानों के खेत खाली ही पड़े रहते हैं. उत्तर प्रदेश में बुंदेलखंड इलाके में किसान मूंग और उड़द की खेती करते हैं. इसके अलावा, हरी खाद के लिए ढैंचा सबसे अच्छा विकल्प माना जाता है. इसमें नाइट्रोजन की मात्रा सबसे अधिक होती है. ढैंचा की जड़ों में गांठें होती हैं, जिनमें राइजोबियम नामक जीवाणु रहते हैं. ये जीवाणु वायुमंडल से नाइट्रोजन को तने की मदद से खींचकर जड़ों तक पहुंचाते हैं. इसकी खेती से मिट्टी को 80 से 120 किलो नाइट्रोजन, 15 से 20 किलो फॉस्फोरस, 10 से 12 किलो पोटाश प्रति हेक्टेयर तक का फायदा मिलता है. इसके बाद अगली फसल में यूरिया खाद की मात्रा एक तिहाई कम करके भी भरपूर पैदावार प्राप्त की जा सकती है. ढैंचा की खेती करने से भी मिट्टी में कार्बनिक पदार्थों की मात्रा बढ़ती है।

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कब करें ढैंचा की खेती

ढैंचा की खेती अप्रैल और मई के महीने के बीच की जाती है. यह 45 से 50 दिनों में तैयार हो जाती है. ढैंचा की खेती के लिए 10 से 12 किलो प्रति एकड़ की दर से बीज की जरूरत होती है. जब फसल लगभग 2 फीट की ऊंचाई की हो जाए, तो इसे रोटावेटर से खेत में ही जोता जा सकता है. इस दौरान मिट्टी में नमी का होना बहुत जरूरी है. जुताई के बाद बारिश की वजह से मिट्टी में नमी आने से यह सड़ने लगती है. अगर किसान इसका उत्पादन लेना चाहते हैं तो फसल की 150 दिनों तक देखभाल करनी होगी. एक हेक्टेयर से किसानों को 15 क्विंटल तक बीज की प्राप्ति हो सकती है. किसानों की पहली पसंद पंजाबी संरचना है. इसके अलावा, क्षारीय मिट्टी के लिए ND137 का इस्तेमाल किया जा सकता है।

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